हस्तरेखा में शनि देव का प्रभाव और दुष्प्रभाव एवं उसका उपाय कैसे जानें ।।
हस्तरेखा में शनि देव का प्रभाव और दुष्प्रभाव एवं उसका उपाय कैसे जानें ।। Hastrekha Me Shani Ka Suprabhav And Dushprabhav.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, आकाश में भ्रमण कर रहे शनि ग्रह की रेखा भी विशिष्ट है । यह बल्यधारी ग्रह अपने नीलाभवर्ण और चतुर्दिक मुद्रिका-कार आभायुक्त बलय के कारण बहुत ही शोभन प्रतीत होता है ।।
यह ग्रह अपनी अशुभ स्थिति में मनुष्य को ढाई वर्ष, साढे सात वर्ष, अथवा उन्नीस वर्षों तक अत्यधिक पीडा देता है । परंतु शुभ स्थिति में यह ग्रह उतना ही वैभवदाता, रक्षाकारी और संपन्नतावर्धक रूप धारण कर लेता हैं ।।
मित्रों, जन्मकुंडली की भांति मानव हथेलियों पर भी शनि ग्रह की स्थिति होती है । शनि-पर्वत की स्थिति, आकार उभार और समीपवर्ती पर्वतों की संगति के भेद से शुभाशुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के फल का अनुमान लगाया जा सकता है ।।
मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान होता है । यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा जाता है । शनि की शक्ति का अनुमान मध्यमा की लम्बाई और गठन को देखकर ही लगाया जा सकता है ।।
यदि वह लम्बीं और सीधी है तथा गुरु और शुक्र की अंगुलियां उसकी ओर झुक रही हैं तो मनुष्य के स्वभाव और चरित्र में शनि ग्रह के गुणों की प्रधानता होगी । ये गुण हैं- स्वाधीनता, बुद्धिमता, अध्ययनशीलता, गंभीरता, सहनशीलता, विनम्रता और अनुसंधान तथा इसके साथ अंतर्मुखी एवं अकेलापन ।।
शनि के दुर्गुणों की सूची भी छोटी नहीं है, विषाद नैराश्य, अज्ञान, ईर्ष्या, अंधविश्वास आदि इसमें सम्मिलित होता है । शनि ग्रह से प्रभावित मनुष्यों के शारीरिक गठन को भी बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है ।।
ऐसे मनुष्य कद-काठी में असामान्य रूप में लम्बे होते हैं । उनका शरीर सुसंगठित लेकिन सिर पर बाल कम होते हैं । लम्बे चेहरे पर अविश्वास और संदेह से भरी उनकी गहरी और छोटी आंखें हमेशा उदास रहती हैं ।।
यद्यपि उत्तोजना, क्रोध और घृणा को वह छिपा नहीं पाते । इस पर्वत के अभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता । मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी भी कही जाती है ।।
मित्रों, क्योंकि भाग्यरेखा की समाप्ति प्रायः इसी अंगुली की मूल में होती है । पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान होता है । ऐसे मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते हैं ।।
शुभ शनि पर्वत प्रधान मनुष्य, इंजीनियर, वैज्ञानिक, जादूगर, साहित्यकार, ज्योतिषी, कृषक अथवा रसायन शास्त्री होते हैं । शुभ शनि पर्वत वाले स्त्री-पुरुष प्रायः अपने माता-पिता के एकलौता संतान होते हैं तथा उनके जीवन में प्रेम का सर्वोपरि महत्व होता है ।।
बूढापे तक प्रेम में उनकी रुचि बनी रहती है, किंतु इससे अधिक आनंद उन्हें प्रेम का नाटक रचने में आता है । उनका यह नाटक छोटी आयु से ही प्रारंभ हो जाता है । वे स्वभाव से संतोषी लेकिन अत्यधिक कंजूस होते हैं ।।
कला क्षेत्रों में इनकी रुचि संगीत में विशेष रूप से होती है । यदि वह लेखक हैं तो धार्मिक रहस्यवाद उनके लेखन का महत्वपूर्ण विषय होता है ।।
अविकसित शनि पर्वत होने पर मनुष्य एकांत प्रिय अपने कार्यों अथवा लक्ष्य में इतना तन्मय हो जाते हैं, कि घर-गृहस्थी की चिंता तक नहीं करते । ऐसे लोग चिड-चिडे और शंकालु स्वभाव के हो जाते हैं ।।
मित्रों, उनके शरीर में रक्त वितरण भी कमजोर होता है । उनके हाथ-पैर ठंडे होते हैं, और उनके दांत काफी कमजोर हुआ करते हैं । दुघर्टनाओं में अधिकतर उनके पैरों और नीचे के अंगों में ही चोट लगती है ।।
ऐसे लोग अधिकतर निर्बल स्वास्थ्य के ही देखे जाते हैं । यदि हृदय रेखा भी जंजीरा कार हो तो मनुष्य की वाहन दुर्घटना में मृत्यु भी हो जाती है ।।
शनि के क्षेत्र पर भाग्य रेखा कही जाने वाली शनि रेखा समाप्त होती है । इस पर शनिवलय भी पायी जाती है और शुक्रवलय इस पर्वत को घेरती हुई निकलती है । इसके अतिरिक्त हृदय रेखा इसकी निचली सीमा को छूती हैं ।।
इन महत्वपूर्ण रेखाओं के अतिरिक्त इस पर्वत पर एक रेखा जो सौभाग्य सूचक होती है । वो इस प्रकार होती है । जो रेखायें गुरु की पर्वत की ओर जा रही हों तो वो मनुष्य को सार्वजनिक मान-सम्मान प्राप्त करवाती है ।।
इस पर्वत पर बिन्दु जहां दुर्घटना सूचक चिन्ह होता है वही क्रांस मनुष्य को संतति उत्पादन की क्षमता को विहीन करता है । नक्षत्र की उपस्थिति उसे हत्या या आत्महत्या की ओर प्रेरित कर सकती है ।।
वृत का होना इस पर्वत पर शुभ होता है और वर्ग का चिन्ह होना अत्यधिक शुभ लक्षण माना जाता है । ये घटनाओं और शत्रुओं से बचाव के लिए सुरक्षा सूचक है, जबकि जाल होना अत्यधिक दुर्भाग्य का लक्षण होता है ।।
कहा गया है “नाऽतिउचं नाऽतिनीचं” अर्थात शनि का पर्वत अधिक दबा हुआ हो या अधिक उठा हुआ हो तो भी अच्छा नहीं माना जाता । यदि शनि पर्वत अत्यधिक विकसित होता है तो मनुष्य २२ या ४५ वर्षों की उम्रों में निश्चित अत्महत्या कर लेता है ।।
डाकू, ठग, अपराधीयों के हाथों में यह पर्वत बहुत अधिक विकसित पाया जाता है जो साधारणतः पीलापन लिये होता है । उनकी हथेलियां तथा चमडी भी पीली होती है और स्वभाव में चिडचिडापन झलकता रहता हैं ।।
यह पर्वत अनुकूल स्थिति में सुरक्षा, संपत्ति, प्रभाव, बल पद-प्रतिष्ठा और व्यवसाय प्रदान करता है । परंतु विपरीत गति होने पर इन समस्त सुख साधनों को नष्ट करके घोर संत्रास्त दायक रूप धारण कर लेता है ।।
यदि इस पर्वत पर त्रिकोण जैसी आकृति हो तो मनुष्य गुप्तविधाओं में रुचि, विज्ञान, अनुसंधान, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र सम्मोहन आदि में गहन रुचि रखता है और इस विषय का ज्ञाता हो जाता है ।।
इस पर्वत पर मंदिर का चिन्ह भी हो तो मनुष्य प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के रूप में प्रकट होते हैं । क्योंकि यह चिन्ह राजयोग कारक माना जाता है । यह चिन्ह जिस किसी की हथेलियों पर शनि के पर्वत पर उत्पन्न होते हैं, वह किसी भी उम्रों में ही वह मनुष्य लाखों-करोडों के स्वामी होते हैं ।।
यदि इस पर्वत पर त्रिशूल जैसी आकृतियां हो तो वह मनुष्य एका-एक सन्यासी बन जाते हैं । यह वैराग्य सूचक चिन्ह माना जाता है । इसके अलावा शनि का प्रभाव कभी-कभी शुरुआती समय में ही भाग्यवान बना देता है ।।
परन्तु कभी-कभी तो जब शनि का प्रभाव समाप्त होता है तब प्रबल भाग्योदय का योग बनता है । उपरोक्त कारणों में से कोई एक भी कारण यदि आपके अन्दर हो तो उसकी शान्ति हेतु कुछ उपाय आप कर सकते हैं ।।
शनि के दु:ष्प्रभाव की शान्ति हेतु शनिवार को पीपल के नीचे दीपक जलाना चाहिए । हनुमान जी की पूजा-उपासना करने से शनिदेव से सम्बंधित दोषों की शान्ति हो जाती है ।।
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